बोलती हैं बुंदेली कलाकार मनमोहन की बनाई कलाकृतियां

बेजान में जान फूंकते हैं मनमोह
पीतल की नयनाभिराम कलाकृतियों का चितेरा मनमोहन 
----राकेश कुमार अग्रवाल, कुलपहाड़ महोबा। 
महोबा। कहते हैं कि कमल कीचड़ में खिलता है , इसको सच साबित कर दिखाया है बुन्देलखण्ड के महोबा जनपद के कुलपहाड़ कस्बे के पीतल शिल्पकार (मेटल आर्टिस्ट) मनमोहन सोनी ने , मनमोहन देश के उन चुनिंदा शिल्पकारों में शामिल हैं जिन्हें इस वर्ष 2012 के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार के चयनित होने पर विज्ञान भवन में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सम्मानित किया। 
रेती , कलम , छैनी , जमूड़ा , आरी , बांका , पंखा , व भट्टी मनमोहन के मुख्य औजार हैं जिनके माध्यम से वे कला-कृतियों को अंतिम रूप देते हैं। पीतल , चाँदी व तांबे के माध्यम से कलाकृतियों को गढना बड़ा बारीक काम है , थोड़ी सी असावधानी व जल्दबाजी पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती है। मनमोहन के अनुसार एकाग्रचित्र होकर काम करना पड़ता है , कई बार ऐसा भी होता है कि बनाते-बनाते कला-कृति टूट जाती है तो कई बार बनाना कुछ चाहते हैं लेकिन अंत में बन कुछ और जाता है। मनमोहन के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण है फिनिशिंग। जिस कलाकृति में जितना बारीक काम हो एवं बेहतर फिनिशिंग हो उसकी उतनी ज्यादा डिमांड होती है। उतना ही वह पसंद किया जाता है। 
मनमोहन ने 64 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल के बीचों-बीच विराजित लक्ष्मी जिसे बन्द व खोला भी जा सकता था को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को भेंट किया था। उनकी महारानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों से लोहा लेते हुए 1857 की क्रांति में युद्धरत कलाकृति जिसमें सैनिक व तलवारों को देखकर यूं लगता है जैसे 1857 का गदर जीवन्त हो उठा हो। मनमोहन के बनाए हाथी , घोड़ा , शेर , मेंढक हों या अगरबत्ती स्टैंड , सुरमेदानी , या फिर नृत्य करती महिला या मेकअप बाॅक्स सभी की अपनी विशिष्टता होती है सुपारी काटने वाले सरौतों में जहाँ शेर व मछली बनी हैं तो हाथी-शेर का युद्ध भी है। 
नृत्य करती महिला को इंकपाट की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है। तो मोर से हुक्का पिया जा सकता है। शंख बजाता चूहा तो सभी के आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। 
मनमोहन जब भी कोई आइटम बनाना शुरू करते हैं तो दिमाग अपने आप दौड़ने लगता है , स्वतः ही नए-नए 'आइडिया' दिमाग में आने लगते हैं। 1998 में मनमोहन द्वारा बनाई गई कृति आल्हा-ऊदलको पहली बार नेशनल मेरिट अवार्ड के लिए चुना गया था। इसके बाद से उनको बेहतर से बेहतर कलाकृति बनाने की धुन सवार होती गई। 
1997 में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर ' सर्टिफिकेट साॅफ मेरिट' पुरस्कार से 1998-99 में उत्तर प्रदेश के उद्योग निदेशालय की ओर से राज्य हस्त्रशिल्प पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। 
देश के प्रतिष्ठित सूरज कुण्ड मेले से लेकर मुम्बई , बैंगलोर , चंडीगढ़ , कोलकाता , खजुराहो , आगरा , लखनऊ , त्रिवेन्द्रम में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगा चुके मनमोहन को 2010 में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भी एक से 15 अक्टूबर तक अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाने का मौका मिला थामेरा जूता है जापानी ये पतलून इंग्लिश्तानी सिर पे लाल टोपी रूसी , फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी। इस हिन्दुस्तानी गीत से शोमेन राजकपूर ने जिस तरह रूस की जनता का दिल जीता था उसी प्रकार 2012 में मनमोहन को 25 से 28 सितम्बर तक रूस की राजधानी मास्को में आयोजित कन्ज्यूमेक्सयो में पूरी दुनिया के विभिन्न देशों के चुनिन्दा कलाकारों के साथ अपनी शिल्पकला के प्रदर्शन एवं बिक्री के लिए भी आमंत्रित किया जा चुका है। भारतसे भाग लेने के लिए मास्को 6 कलाकार गए थे जिनमें सबसे ज्यादा बिक्री मनमोहन सोनी ने की थी। 
बेजान धातुओं में अपनी कला के माध्यम से जान फूंकने वाले मनमोहन की शिल्पकला का अनूठापन ही है जो उन्हें सात-समन्दर पार ले गया। 
मनमोहन के अनुसार जब भी कोई कलाकृति बनाना शुरू करते हैं तो दिमाग अपने आप दौड़ने लगता है , स्वतः ही नए-नए 'आइडिया' दिमाग में आने लगते हैं , जहाँ तक आय का सवाल है तो पैसा तो ठीक-ठाक मिल जाता है फिर भी उनके अनुसार सबसे ज्यादा मुनाफे में निर्यातक रहता है। 
पद्मश्री और यश भारती पुरस्कार पाने की लालसा रखने वाले मनमोहन के अनुसार लगन व मेहनत के साथ आप काम करते हैं तो देर-सबेर आपके काम को पहचान अवश्य मिलती है। मशीनों के इस दौर में हस्तशिल्प की प्रासंगिकता मनमोहन जैसे गुणी शिल्पकारों के दम पर बनी रहेगी , ऐसी आशा तो बंधती ही है।